Satasangi Lane, Deo 824202
Wednesday, April 24, 2024
Tuesday, April 16, 2024
अनेक नामों वाली पार्वती 🙏🏽
देवीपार्वती के 108 नाम और इनका अर्थ
〰️〰️〰️〰️
देवी पार्वती विभिन्न नामों से जानी जाता है और उनमें से हर एक नाम का एक निश्चित अर्थ और महत्व है। देवी पार्वती से 108 नाम जुड़े हुए है । भक्त बालिकाओं के नाम के लिए इस नाम का उपयोग करते है।
1 . आद्य - इस नाम का मतलब प्रारंभिक वास्तविकता है।
2 . आर्या - यह देवी का नाम है
3 . अभव्या - यह भय का प्रतीक है।
4 . अएंदरी - भगवान इंद्र की शक्ति।
5 . अग्निज्वाला - यह आग का प्रतीक है।
6 . अहंकारा - यह गौरव का प्रतिक है ।
7 . अमेया - नाम उपाय से परे का प्रतीक है।
8 . अनंता - यह अनंत का एक प्रतीक है।
9 . अनंता - अनंत
10 अनेकशस्त्रहस्ता - इसका मतलब है कई हतियारो को रखने वाला ।
11 . अनेकास्त्रधारिणी - इसका मतलब है कई हतियारो को रखने वाला ।
12 . अनेकावारना - कई रंगों का व्यक्ति ।
13 . अपर्णा – एक व्यक्ति जो उपवास के दौरान कुछ नहि कहता है यह उसका प्रतिक है ।
14 . अप्रौधा – जो व्यक्ति उम्र नहि करता यह उसका प्रतिक है ।
15 . बहुला - विभिन्न रूपों ।
16 . बहुलप्रेमा - हर किसी से प्यार ।
17 . बलप्रदा - यह ताकत का दाता का प्रतीक है ।
18 . भाविनी - खूबसूरत औरत ।
19 . भव्य – भविष्य ।
20 . भद्राकाली - काली देवी के रूपों में से एक ।
21 . भवानी - यह ब्रह्मांड की निवासी है ।
22 . भवमोचनी - ब्रह्मांड की समीक्षक ।
23 . भवप्रीता - ब्रह्मांड में हर किसी से प्यार पाने वाली ।
24 . भव्य - यह भव्यता का प्रति है ।
25 . ब्राह्मी - भगवान ब्रह्मा की शक्ति ।
26 . ब्रह्मवादिनी – हर जगह उपस्तित ।
27 . बुद्धि - ज्ञानी
28 . बुध्हिदा - ज्ञान की दातरि ।
29 . चामुंडा - राक्षसों चंदा और मुंडा की हत्या करने वलि देवि ।
30 . चंद्रघंटा - ताकतवर घंटी
31 . चंदामुन्दा विनाशिनी - देवी जिसने चंदा और मुंडा की हत्या की ।
32 . चिन्ता - तनाव ।
33 . चिता - मृत्यु - बिस्तर ।
34 . चिति - सोच मन ।
35 . चित्रा - सुरम्य ।
36 . चित्तरूपा - सोच या विचारशील राज्य ।
37 . दक्शाकन्या - यह दक्षा की बेटी का नाम है ।
38 . दक्शायाज्नाविनाशिनी - दक्षा के बलिदान को टोकनेवाला ।
39 . देवमाता - देवी माँ ।
40 . दुर्गा - अपराजेय ।
41 . एककन्या - बालिका ।
42 . घोररूपा - भयंकर रूप ।
43 . ज्ञाना - ज्ञान ।
44 . जलोदरी - ब्रह्मांड मेइन वास करने वाली ।
45 . जया - विजयी
46 कालरात्रि - देवी जो कालि है और रात के समान है ।
47 . किशोरी - किशोर
48 . कलामंजिराराजिनी - संगीत पायल ।
49 . कराली - हिंसक
50 . कात्यायनी - बाबा कत्यानन इस नाम को पूजते है ।
51 . कौमारी - किशोर ।
52 . कोमारी - सुंदर किशोर ।
53 . क्रिया - लड़ाई ।
54 . क्र्रूना - क्रूर ।
55 . लक्ष्मी - धन की देवी ।
56 . महेश्वारी - भगवान शिव की शक्ति ।
57 . मातंगी - मतंगा की देवी ।
58 . मधुकैताभाहंत्री - देवी जिसने राक्षसों मधु और कैताभा को आर दिया ।
59 . महाबला - शक्ति ।
60 . महातपा - तपस्या ।
61 . महोदरी - एक विशाल पेट में ब्रह्मांड में रखते हुए ।
62 . मनः - मन ।
63 . मतंगामुनिपुजिता - बाबा मतंगा द्वारा पूजी जाती है ।
64 . मुक्ताकेशा - खुले बाल ।
65 . नारायणी - भगवान नारायण विनाशकारी विशेषताएँ ।
66 . निशुम्भाशुम्भाहनानी - देवी जिसने भाइयो शुम्भा निशुम्भा को मारा ।
67 . महिषासुर मर्दिनी - महिषासुर राक्षस को मार डाला जो देवी ने ।
68 नित्या - अनन्त ।
69 . पाताला - रंग लाल ।
70 . पातालावती - लाल और सफ़द पहेने वाली ।
71 . परमेश्वरी - अंतिम देवी ।
72 . पत्ताम्बरापरिधान्ना - चमड़े से बना हुआ कपडा ।
73 . पिनाकधारिणी - शिव का त्रिशूल ।
74 . प्रत्यक्ष – असली ।
75 . प्रौढ़ा - पुराना ।
76 . पुरुषाकृति - आदमी का रूप लेने वाला ।
77 . रत्नप्रिया - सजी
78 . रौद्रमुखी - विनाशक रुद्र की तरह भयंकर चेहरा ।
79 . साध्वी - आशावादी ।
80 . सदगति - मोक्ष कन्यादान ।
81 . सर्वास्त्रधारिणी - मिसाइल हथियारों के स्वामी ।
82 . सर्वदाना वाघातिनी - सभी राक्षसों को मारने के लिए योग्यता है जिसमें ।
83 . सर्वमंत्रमयी - सोच के उपकरण ।
84 . सर्वशास्त्रमयी - चतुर सभी सिद्धांतों में ।
85 . सर्ववाहना - सभी वाहनों की सवारी ।
86 . सर्वविद्या - जानकार ।
87 . सती - जो महिला जिसने अपने पति के अपमान पर अपने आप को जला दिया ।
89 . सत्ता - सब से ऊपर ।
90 . सत्य - सत्य ।
91 . सत्यानादास वरुपिनी - शाश्वत आनंद ।
92 . सावित्री - सूर्य भगवान सवित्र की बेटी ।
93 . शाम्भवी - शंभू की पत्नी ।
94 . शिवदूती - भगवान शिव के राजदूत ।
95 . शूलधारिणी – व्यक्ति जो त्र्सिहुल धारण करता है ।
96 . सुंदरी - भव्य ।
97 . सुरसुन्दरी - बहुत सुंदर ।
98 . तपस्विनी - तपस्या में लगी हुई ।
99 . त्रिनेत्र - तीन आँखों का व्यक्ति ।
100 . वाराही – जो व्यक्ति वाराह पर सवारी करता हियो ।
101 . वैष्णवी - अपराजेय ।
102 . वनदुर्गा - जंगलों की देवी ।
103 . विक्रम - हिंसक ।
104 . विमलौत्त्त्कार्शिनी - प्रदान करना खुशी ।
105 . विष्णुमाया - भगवान विष्णु का मंत्र ।
106 . वृधामत्ता - पुराना है , जो माँ ।
107 . यति - दुनिया त्याग जो व्यक्ति एक ।
108 . युवती - औरत ।
देवी पार्वती यह सभी नाम पूजा करने के लिए और उनके आशीर्वाद पाने के लिए , लिए जाते है।
🙏🏽🙏🏽❤️🙏🏽🌹
Tuesday, March 26, 2024
_होली खेल है जाने सांवरिया_*.......
*🌹रा धा स्व आ मी🌹*
*_होली खेल है जाने सांवरिया_*
*_सतगुरु से सर्व–रंग मिलाई_*
फागुन मास रँगीला आया।
घर घर बाजे गाजे लाया।।
यह नरदेही फागुन मास।
सुरत सखी आई करन बिलास।।
तुझ को फिर कर फागुन आया।
सम्हल खेलियो हम समझाया।।
होली के पावन अवसर पर समस्त सतसंग जगत प्राणी मात्र को अनेकानेक बधाई।
हुजूर रा धा स्व आ मी दयाल समस्त जीवों को स्वार्थ व परमार्थ की तरक्की की दात बख्शे। यहीc प्रार्थना उन दयाल के चरन कमलों में हम सब तुच्छ जीव पेश करते है।
रा धा स्व आ मी दयाल की दया रा धा स्व आ मी सहाय!
*🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻*🌹
Sunday, February 25, 2024
बैकुंठ धाम पर भंडारे / डॉ.स्वामी प्यारी कौड़ा के दिन*
*🙏🙏🙏🙏🙏
तेरे सजदे में सर झुका रहे,
यह आरज़ू अब दिल में है।
हर हुक्म की तामील करें,
बस यह तमन्ना अब मन में है।।
तेरी आन बान शान निराली है ,
यह नज़ारा हमने देख लिया।
बैकुंठ धाम पर यमुना तीरे,
तेरा जलवा हमने देख लिया।।
रूहानियत का आलम था,
रौनकों का अजब शोर था।
हंसते खिलखिलाते प्रेमियों से,
मजमा सराबोर था।
दाता जी की तशरीफ़ आवरी से,
कण-कण में चेतनता छा गई।
यमुना की लहरें मचलने लगीं,
हर गुल पर रौनक आ गई।।
संगीत की स्वर लहरियों पर,
थिरकती सुपरमैनों की टोलियां।
दाता दयाल की दया दृष्टि पा
भर रहीं थीं प्रेम की झोलियां।।
दया और मेहर का अजब नज़ारा,
यमुना के तट पर था।
सैकड़ो प्रेमियों का प्रेम रंग,
थिरक रहा यमुना जल पर था।।
शहंशाहों के शहंशाह यमुना तट पर विराजमान थे।
प्रेमियों के झुंड के झुंड उनके चरणों पर कुर्बान थे।।
बैकुंठ धाम का अनुपम नज़ारा हम ने यहां देख लिया।
सोते जगते हर वक्त ऊष्मा पा, निज धाम हमने पा लिया।।
स्याही रंग छुड़ाकर दाता ने, रंग दिया मजीठे रंग में।
कल करम से हमें बचा, प्रेम सरन दे बिठा लिया गोद में।।
सर पर धरा हाथ दया का, चिंता अब किस बात की।
प्रेम रंग में जब रंग डाला ,अब फिक्र नहीं दिन-रात की।।
*डॉक्टर स्वामी प्यारी कौड़ा*
4/64 विद्युत नगर
दयालबाग,आगरा
*25 फरवरी 2024
Monday, February 5, 2024
मौन और मुस्कान
*प्रस्तुति - नवल किशोर प्रसाद / कुसुम सिन्हा
मैं मौमु सेठ के बारे में बहुत तो नहीं जानता, पर इतना तो जानता ही हूँ कि वह पहले से ही सेठ नहीं था। वह तो एक गरीब आदमी था, झन्नु उसका नाम था।
झन्नु हमेशा झन्नाया रहता। बिना बात का झगड़ा करना तो उसके स्वभाव में ही था।
किसी ने पूछ लिया कि *झन्नु भाई टाईम क्या हुआ होगा?* तो झन्नु झनझना जाता और कहता- *यह घड़ी तेरे बाप ने ले कर दी है? यहाँ टाईम पहले ही खराब चल रहा है, तूं और आ गया मेरा टाईम खाने। भाग यहाँ से।*
अब ऐसे आदमी के साथ कौन काम करे? न उसके पास कोई ग्राहक टिकता, न नौकर। यही कारण था कि वो जो भी काम करता था, उसमें उसे नुकसान ही होता था।
कहते हैं कि एक संत एक बार झन्नु के पास से गुजरे। वे कभी किसी से कुछ माँगते नहीं थे, पर न मालूम उनके मन में क्या आया, सीधे झन्नु के सामने आ खड़े हुए। बोले- *बेटा! संत को भोजन करा देगा?"*
अब झन्नु तो झन्नु ही ठहरा। झन्ना कर बोला- *"मैं खुद भूखे मर रहा हूँ, तूं और आ गया। चल चल अपना काम कर।"*
संत मुस्कुराए और बोले- *"मैं तो अपना काम ही कर रहा हूँ, बिल्कुल सही से कर रहा हूँ। तुम ही अपना काम सही से नहीं कर रहे।"*
झन्नु झटका खा गया। उसे ऐसे उत्तर की उम्मीद नहीं थी। पूछने लगा- *"क्या मतलब?"*
संत उसके पास बैठ गए। बोले- *"बेटा मालूम है तुम्हारा नाम झन्नु क्यों है? क्योंकि झन्नाया रहना और नुकसान उठाना, यही तुम करते आए हो।अगर तुम अपना स्वभाव बदल लो, तो तुम्हारा जीवन बदल सकता है। मेरी बात मानो तो चाहे कुछ भी हो जाए, खुश रहा करो।"*
झन्नु बोला- *"महाराज! खुश कैसे रहूँ? मेरा तो नसीब ही खराब है।"*
संत बोले- *"खुशनसीब वह नहीं जिसका नसीब अच्छा है, खुशनसीब वह है जो अपने नसीब से खुश है। तुम खुश रहने लगो तो नसीब बदल भी सकता है। तुम नहीं जानते कि कामयाब आदमी खुश रहे न रहे, पर खुश रहने वाला एक ना एक दिन कामयाब जरूर होता है।"*
झन्नु बोला- *"महाराज! दुनिया बड़ी खराब है और मेरा ढंग ही ऐसा है कि मुझसे झूठ बोला नहीं जाता।"*
संत बोले- *"झन्नु! झूठ नहीं बोल सकते पर चुप तो रह सकते हो? तुम दो सूत्र पकड़ लो। मौन और मुस्कान। मुस्कान समस्या का समाधान कर देती है। मौन समस्या का बाध कर देता है। चाहे जो भी हो जाए, तुम चुप रहा करो, और मुस्कुराया करो। फिर देखो क्या होगा?"*
*झन्नु को संत की बात जंच गई। और भगवान की कृपा से उसका स्वभाव और भाग्य दोनों बदल गए। फल क्या मिला? समय बदल गया, झन्नु मौन और मुस्कान के सहारे चलते चलते मौमु सेठ बन गया।*
*शुभ प्रभात। 🙏🙏🙏
आज का दिन आपके लिए शुभ एवं मंगलकारी हो।*
❤️🌹💐👌🙏👍
Friday, February 2, 2024
रोज़ाना वाकिआत-
रा धा/ध: स्व आ मी!
02-02-24- आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे:-
(12.1.32 का दूसरा व शेष भाग)-
रात के सतसंग में ब्रह्मा (बर्मा) के एक सतसंगी ने सवाल किया कि मन कभी तो बडा प्रेम दिखलाता है कभी खुश्क (सूखा) हो जाता है कभी बडा श्रद्धावान हो जाता है कभी मुखालिफत (विरोध) करने लगता है। इसकी क्या वजह है? जवाब दिया गया- इसकी वजह मन की चंचलता व मलिनता है। जब तक किसी के मन के अन्दर दुनिया की चीजों व बातों के लिए मोह मौजूद है उन चीजों के मुतअल्लिक मुआफिक (अनूकूल )या मुखालिफ (प्रतिकूल) सूरतें नमूदार (प्रकट) होने पर उसको उन उतार चढ़ाव की हालतो का जरूर तल्ख (कड़वा) तजरबा सहना पड़ेगा। इस मोह की मलिनता को दूर करो व नीज (और भी) मन को एक ठिकाने पर क़ायम करने की कोशिश करो तो मन की एकरस हालत कायम रह सकेगी। उसने कहा यह तो निहायत (बहुत) मुश्किल काम है। मन न आसानी से चीजो की मोहब्बत छोडेगा और न अपनी चचलता से बाज आवेगा। जवाब दिया गया कि मालिक के चरनों में मोह बढाओ ऐसा करने से ससार का मोह आप से आप छूट जावेगा और प्रेम बस होकर जब मालिक अन्तर में दर्शन देने की कृपा फरमावेगा तो सभी मलिनता एकदम भस्म हो जावेगी। उसने कहा कि मालिक से प्रेम बढाना भी तो आसान काम नहीं है? जवाब दिया गया - बेशक यह भी आसान बात नहीं है। तो फिर बेहतर होगा कि सतगुरु से या किसी प्रेमी जन से मोहब्बत कायम करो। और दुख सुख व नफा नुकसान दोनों की हालतों में उन्हें याद किया करने से भी मन की हालत बहुत कुछ सुधर सकती है।उसने यह जवाब मंजूर किया।
🙏🏻रा धा/ध: स्व आ मी🙏🏻
रोज़ाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*
Wednesday, January 31, 2024
हनुमान कथाएँ
*
🌹हनुमानजी की 5 पौराणिक कथाएं🌹
प्रस्तुति - कुसुम सिन्हा / नवल किशोर प्रसाद
🕉🙏🚩
https://chat.whatsapp.com/Fosq14bHQeW4UW0oF
*⭕वाल्मीकि रामायण के अलावा दुनियाभर की रामायण में हनुमानजी के संबंध में सैंकड़ों कथाओं का वर्णन मिलता है। उनके बचपने से लेकर कलयुग तक तो हजारों कथाएं हमें पढ़ने को मिल जाती हैं। हनुमानजी को कलयुग का संकट मोचन देवता कहा गया है। एकमात्र इन्हीं की भक्ति फलदायी है। आओ जानते हैं कि कौनसी 5 ऐसी पौराणिक कथाएं हैं जो आज भी प्रचलित हैं।*
*🚩1. चारों जुग परताप तुम्हारा:-* लंका विजय कर अयोध्या लौटने पर जब श्रीराम उन्हें युद्घ में सहायता देने वाले विभीषण, सुग्रीव, अंगद आदि को कृतज्ञतास्वरूप उपहार देते हैं तो हनुमानजी श्रीराम से याचना करते हैं- *•''यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले। तावच्छरीरे वत्स्युन्तु प्राणामम न संशय:।।''*
*•अर्थात :-* 'हे वीर श्रीराम! इस पृथ्वी पर जब तक रामकथा प्रचलित रहे, तब तक निस्संदेह मेरे प्राण इस शरीर में बसे रहें।' इस पर श्रीराम उन्हें आशीर्वाद देते हैं- *•'एवमेतत् कपिश्रेष्ठ भविता नात्र संशय:। चरिष्यति कथा यावदेषा लोके च मामिका तावत् ते भविता कीर्ति: शरीरे प्यवस्तथा। लोकाहि यावत्स्थास्यन्ति तावत् स्थास्यन्ति में कथा।'*
*•अर्थात् :-* 'हे कपिश्रेष्ठ, ऐसा ही होगा, इसमें संदेह नहीं है। संसार में मेरी कथा जब तक प्रचलित रहेगी, तब तक तुम्हारी कीर्ति अमिट रहेगी और तुम्हारे शरीर में प्राण भी रहेंगे ही। जब तक ये लोक बने रहेंगे, तब तक मेरी कथाएं भी स्थिर रहेंगी।' चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा।।
*🚩2. दो बार उठाया था संजीवनी पर्वत:-* एक बार बचपन में ही हनुमानजी समुद्र में से संजीवनी पर्वत को देवगुरु बृहस्पति के कहने से अपने पिता के लिए उठा लाते हैं। यह देखकर उनकी माता बहुत ही भावुक हो जाती है। इसके बाद राम-रावण युद्ध के दौरान जब रावण के पुत्र मेघनाद ने शक्तिबाण का प्रयोग किया तो लक्ष्मण सहित कई वानर मूर्छित हो गए थे। जामवंत के कहने पर हनुमानजी संजीवनी बूटी लेने द्रोणाचल पर्वत की ओर गए। जब उनको बूटी की पहचान नहीं हुई, तब उन्होंने पर्वत के एक भाग को उठाया और वापस लौटने लगे। रास्ते में उनको कालनेमि राक्षस ने रोक लिया और युद्ध के लिए ललकारने लगा। कालनेमि राक्षस रावण का अनुचर था। रावण के कहने पर ही कालनेमि हनुमानजी का रास्ता रोकने गया था। लेकिन रामभक्त हनुमान उसके छल को जान गए और उन्होंने तत्काल उसका वध कर दिया।
*🚩3. विभीषण और राम को मिलाना:-* जब हनुमानजी सीता माता को ढूंढते-ढूंढते विभीषण के महल में चले जाते हैं। विभीषण के महल पर वे राम का चिह्न अंकित देखकर प्रसन्न हो जाते हैं। वहां उनकी मुलाकात विभीषण से होती है। विभीषण उनसे उनका परिचय पूछते हैं और वे खुद को रघुनाथ का भक्त बताते हैं। हनुमान और विभीषण का लंबा संवाद होता है और हनुमानजी जान जाते हैं कि यह काम का व्यक्ति है।
इसके बाद जिस समय श्रीराम लंका पर चढ़ाई करने की तैयारी कर रहे होते हैं उस दौरान विभीषण का रावण से विवाद चल रहा होता है अंत में विभीषण महल को छोड़कर राम से मिलने को आतुर होकर समुद्र के इस पार आ जाते हैं। वानरों ने विभीषण को आते देखा तो उन्होंने जाना कि शत्रु का कोई खास दूत है। कोई भी विभीषण पर विश्वास नहीं करता है।
सुग्रीव कहते हैं- 'हे रघुनाथजी! सुनिए, रावण का भाई मिलने आया है।' प्रभु कहते हैं- 'हे मित्र! तुम क्या समझते हो?' वानरराज सुग्रीव ने कहा- 'हे नाथ! राक्षसों की माया जानी नहीं जाती। यह इच्छानुसार रूप बदलने वाला न जाने किस कारण आया है।' ऐसे में हनुमानजी सभी को दिलासा देते हैं और राम भी कहते हैं कि मेरा प्रण है कि शरणागत के भय को हर लेना चाहिए। इस तरह हनुमानजी के कारण ही श्रीराम-विभीषण का मिलन सुनिश्चित हो पाया।
*🚩4. सबसे पहले लिखी रामायण:-* शास्त्रों के अनुसार विद्वान लोग कहते हैं कि सर्वप्रथम रामकथा हनुमानजी ने लिखी थी और वह भी एक शिला (चट्टान) पर अपने नाखूनों से लिखी थी। यह रामकथा वाल्मीकिजी की रामायण से भी पहले लिखी गई थी और यह *•'हनुमद रामायण'* के नाम से प्रसिद्ध है। यह घटना तब की है जबकि भगवान श्रीराम रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या में राज करने लगते हैं और श्री हनुमानजी हिमालय पर चले जाते हैं। वहां वे अपनी शिव तपस्या के दौरान की एक शिला पर प्रतिदिन अपने नाखून से रामायण की कथा लिखते थे। इस तरह उन्होंने प्रभु श्रीराम की महिमा का उल्लेख करते हुए *•'हनुमद रामायण'* की रचना की।
कुछ समय बाद महर्षि वाल्मीकि ने भी *•'वाल्मीकि रामायण'* लिखी और लिखने के बाद उनके मन में इसे भगवान शंकर को दिखाकर उनको समर्पित करने की इच्छा हुई। वे अपनी रामायण लेकर शिव के धाम कैलाश पर्वत पहुंच गए। वहां उन्होंने हनुमानजी को और उनके द्वारा लिखी गई *•'हनुमद रामायण'* को देखा। हनुमद रामायण के दर्शन कर वाल्मीकिजी निराश हो गए।
वाल्मीकिजी को निराश देखकर हनुमानजी ने उनसे उनकी निराशा का कारण पूछा तो महर्षि बोले कि उन्होंने बड़े ही कठिन परिश्रम के बाद रामायण लिखी थी लेकिन आपकी रामायण देखकर लगता है कि अब मेरी रामायण उपेक्षित हो जाएगी, क्योंकि आपने जो लिखा है उसके समक्ष मेरी रामायण तो कुछ भी नहीं है। तब वाल्मीकिजी की चिंता का शमन करते हुए श्री हनुमानजी ने हनुमद रामायण पर्वत शिला को एक कंधे पर उठाया और दूसरे कंधे पर महर्षि वाल्मीकि को बिठाकर समुद्र के पास गए और स्वयं द्वारा की गई रचना को श्रीराम को समर्पित करते हुए समुद्र में समा दिया। तभी से हनुमान द्वारा रची गई हनुमद रामायण उपलब्ध नहीं है। वह आज भी समुद्र में पड़ी है।
*🚩5. हनुमान और अर्जुन:-* आनंद रामायण में वर्णन है कि अर्जुन के रथ पर हनुमान के विराजित होने के पीछे भी कारण है। एक बार किसी रामेश्वरम तीर्थ में अर्जुन का हनुमानजी से मिलन हो जाता है। इस पहली मुलाकात में हनुमानजी से अर्जुन ने कहा- 'अरे राम और रावण के युद्घ के समय तो आप थे?'
📢📣🔔
सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ
प्रस्तुति - रामरूप यादव सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...
-
प्रस्तुति- अमरीश सिंह, रजनीश कुमार वर्धा आम हो रहा है चुनाव में कानून तोड़ना भारतीय चुनाव पूरे विश्व में होने वाला सबसे बड़ा चुनाव ह...
-
From Wikipedia, the free encyclopedia This article is about the academic discipline. For the academic journals named Theological St...
-
Poor Best नाम : मोहनदास करमचंद गांधी। उपनाम : बापू, संत, राष्ट्रपिता, महात्मा गांधी। जन्मतिथि : 2 अक्तूबर 186...